Thursday, June 4, 2009

shujaa khaawar ki shayyiri

कया किया जाये यही अल्लाह को मंज़ूर है
दिल्ली आकर भी ये लगता है के दिल्ली दूर है
वो ताजाली[bright lite] है ना मूसा है ने कोह-ए-तूर है
लम्हा-ए-मोजूद इमकानात[possiblity] से भरपूर है
हर मिसल[proverb] को तजुर्बों ने मेरे झुठलाया मगर
तजुरबे गुमान हैं और हर मसल मश'हूर है
आज कल बस शायरी करती है रोज़-ए-शब् 'शुजा'
शहर ही ऐसा है बेचारा बड़ा मजबूर है

No comments:

Post a Comment

wel come