दायर-ए-गैर में कैसे तुझे सदा देते
तू मिल भी जाता तो तुझे गँवा देते
तुम्ही ने न सुनाया अपना दुःख वर्ना
दुआ वो करते के आसमां हिला देते
हमें ये ज़ोअम रहा के अब के वो पुकारेंगे
उन्हें ये जिद थी की हर बर हम सदा देते
वो तेरा गम था या तासीर मेरे लहजे की
के जिस को हाल सुनते रुला देते
तुम्हें भूलना ही तो अवल दस्तरस में नही
जो इख्तिय्यर भी होता तो क्या भुला देते
तुम्हारी याद ने कोई जवाब ही न दिया
मेरे ख्याल के आंसू रहे सदा देते
समतों को मैं ता_उमर कोसता "सईद"
वो कुछ न कह्ते पर लब तो हिला देते
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