nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Thursday, June 4, 2009
tasleem fazli ki shayyiri
रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए पहले जान फिर जान-ए-जाँ, फिर जान-ऐ-जाना हो गए दिन_बा_दिन बदने लगी उस हुस्न की रानाईआं पहले गुल फिर गुल_बदन फिर गुल बदामाँ हो गए आप तो नज़दीक से नज़दीक_तर आते गए पहले दिल फिर दिलरुबा फिर दिल के मेहमान हो गए
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