nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Friday, June 5, 2009
unknown
आप से गिला आप की कसम सोचते रहे कर न सके हम उस की क्या खता लड़वा है गम क्यूँ गिला करें चारागर से हम ये नवजिशें और ये करम फरत-व-शौक़ से मर न जाए हम खेंचते रहे उमर भर मुझे एक तरफ़ खुदा, एक तरह सनम ये अगर नहीं यार की गली चलते चलते क्यूँ रुक गए कदम
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