Friday, June 5, 2009

unknown

जिस सिमत भी देखूं नज़र आता है के तुम हो...
ऐ जान-ए-जहाँ ये कोई तुम सा है के तुम हो...
ये ख्वाब है खुशबु है के झोंका है के पल है...
ये धुंध है बादल है के साया है के तुम हो...
इस दीद की सा-अत में कई रंग अरजाँ...
में हूँ के कोई और है दुनिया है के तुम हो...
देखो ये किसी और की आँखें हैं के मेरी...
देखो ये किसी और का चेहरा है के तुम हो...

No comments:

Post a Comment

wel come