मुंसिफ अब हम पे वार करता है
हर घड़ी संगसार करता है
छीन कर जिंदगी का परवाना
मौत से हमकिनार करता है
काम करता है क्या आज का मुंसिफ ?
अपनी हस्ती वो दागदार करता है
जाने वाले भला कब आए हैं
दिल यूँही इंतज़ार करता है
उजड़ी बस्ती पे बोलता सन्नाटा
टूटे दिलको फिगार करता है
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