Saturday, June 6, 2009

unknown

यूँ न मिल मुझसे ख़फा हो जैसे
साथ चल मोंज़-ए-सबा हो जैसे
लोग यूँ देख कर हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क को शिरक की हद तक न बढ़ा
यूँ न मिल हमसे ख़फा हो जैसे
ऐसे अनजान बने बैठे हो
तुमको कुछ भी न पता हो जैसे
हिचिक्याँ रात को आती ही रहीं
तुने फिर याद किया हो जैसे

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