Thursday, June 4, 2009

unknown

हर दुःख मुझसे मेरा बांटा…गम अपना सुनना भूल गई
फ़र्ज़ तो उसने खूब निभाया…बस हक जताना भूल गई

सब के ज़ख्मों का मरहम…मुझे बनना उसी ने सिखलाया
अपना ज़ख्म कैसे सीनचोंगी…मुझको बताना भूल गई

ज़िन्दगी से आशना कर के मुझसे कहा ....ये तेरी नही है !!!
ग़रज़ मंजिल उसने दिखला दी…राह दिखाना भूल गई

अपने छुपा के आंसू रखना के सब कमज़ोर समझते हैं
अपने ही आंसू, ये कह कर, मुझसे छुपाना भूल गई

जो इक पल में उन् आंखों ने हाल-ए-दिल सुना डाला
फिर नज़र न वो मिला सकी...में नज़र हटाना भूल गई

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