Saturday, June 6, 2009

unknown

सौ खल्लुस बातों में, सब करम ख्यालों में
बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शेहर वालों में
पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
हम जवाब क्या देते खो गए सवालों में
मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफिर थे खो गए उजालों में
जैसे आधी शब् के बाद चाँद नींद में छौंके
वोह गुलाब की जुम्बिश उन् सियाह बालों में

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