ऐसी वैसी नहीं परियों जैसी थी वो
मचलती घटाओं की बदलियों जैसी थी वो
शोख रंग मनचली तबियत से भरपूर
चमन चमन फिरती तितलियों जैसी थी वो
इक एहसास-ए-ताज़गी इक महक का गुमान
इक सरापा ग़ज़ल कलियों जैसी थी वो
चमक थी बला सी सितम मार डाला
सावन मैं बरपा बिजलियों जैसी थी वो
वास्ता न रहा ज़िन्दगी मैं दुखों से
हमेशा को हासिल खुशियों जैसी थी वो
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