Sunday, June 7, 2009

unknown

मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने
अब गुजारेगा मेरे साथ ज़माने कितने
मैं गिरा था तोह बहुत लोग रुके थे लेकिन
सोचता हूँ मुझे आए थे उठाने कितने
जिस तरह मैंने तुझे अपना बना रखा था
सोचते होंगे यही बात न जाने कितने
तुम नया ज़ख्म लगाओ तुम्हें इस से क्या
भरने वाले है अभी ज़ख्म पुराने कितने

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