लबों पे हर्फ़ ना कोई सवाल रखता था,
कबी जज़्बात मैं इतना कमाल रखता था,
खबर कहाँ थी मुझे ही वो भूल जायेगा,
एक एक चीज़ जो मेरी संभाल रखता था,
बिछड़ते वकत बजाहिर तो कुछ ना बोला था,
मगर ! निगाह मैं सो सो सवाल रखता था,
वो मुसकुरा की बोहत दिएर चुप्प रहा जैसे,
हँसी कि आड़ मैं शायद मलाल रखता था,
सुना है लोग उसे अब बोहत सताते हैं,
जिस एक शख्स का मैं बोहत ख्याल रखता था
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