हिजाब-यें-फितना पारावार अब उठा लेती तो अच्छा था
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था
तेरी नीची नज़र खुद तेरी इस्मत की मुहाफिज़ है
तू इस नश्तर की तेजी आजमा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मत का तारा है
अगर तू साजे-बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे पे यें आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था
दिले-मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल,
तू आंसू पोंछकर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था !
अगर खिलवत मैं तूने सर उठाया भी तो क्या हासिल
भारी महफ़िल मैं आकर सर झुका लेती तो अच्छा था !!
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