दिवार पे आज कोई उस सा आशना भी न था
वो इससे पहले अगरचे कहीं मिला भी न था
मुझे न जाने वो सीने से क्यूँ लगाये फिरे
मैं कोई गुल भी न था मोज-ऐ-हवा भी न था
उसी ने आज बताया मुझे के कौन हूँ मैं
वो जिसको आज से पहले मैं जानता भी न था
कहाँ हूँ क्यूँ हूँ हर इक साँस पूछती है मुझे
कभी मैं अपने सवालों मैं यूँ घिरा भी न था
तमाम शहर सदाओं के इक भंवर मैं है
मेरा मकान कभी ऐसे डोलता भी न था
वो जिस की धुन मैं हम रोज़ घर न रहे
मिला तो अपनी तरफ़ 'जान' देखता भी न था
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