nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Thursday, June 4, 2009
wajeeh irfani ki shayyiri
गुंचा-ऐ-शौक़ लगा है खिलने फिर तुझे याद किया है दिल ने दास्ताने हैं लब-ए-आलम पर हम तो चुप चाप गए थे मिलने मैंने छुप कर तेरी बातें की थी जाने कब जान लिया महफिल ने अंजुमन अंजुमन आराइश[decoration] है आज हर चाक लगा है सिलने
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