nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Monday, December 22, 2008
faiz ki shayyiri
बात बस से निकल चली है दिल की हालत संभल चली है अब जुनूं हद से बढ़ चला है अब तबियत बेहाल चली है अश्क खुनाब[लहू का रंग]हो चले है गम की रंगत बदल चली है लाख पैगाम हो गए है जब सबा इक पल चली है जाओ, अब सो रहो सितारों दर्द की रात ढल चली है
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