ये तसल्ली है के हैं नाशाद सब मैं अकेला ही नहीं
बर्बाद सब सबकी खातिर हैं यहां सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब
भूल के सब रंजिशें सब एक हैं मैं बताऊँ,
सबको होगा याद सब सब को दावा-ए-वफ़ा,
सबको यकीन इस अदाकारी में हैं उस्ताद
सब शहर के हाकिम का ये फरमान है
क़ैद में कहलायेंगे आजाद सब
चार लफ्जों में कहो जो भी कहो
उसको कब फुर्सत सुने फरियाद
सबा तल्खियाँ कैसे ना हो आशार में
हमपे जो गुजरी हमें है याद सब
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