nikala mujhko zannat se fareb-e-zindgi de kar.............. diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Sunday, December 21, 2008
zauk ki shayyiri
रखता ज़बस[इतना अधिक] कि ज़ेफ़ये[बदबूदार जानवर] दुनिया से नंग[घृणा] हूँ पारस भी हो तो जानता मुरदार[एक पत्थर] संग हूँ हूँ वह शिगुफ्ता दिल कि न दोज़ख में तंग हूँ आहरन तो आग मैं हूँ मगर लाला रंग हूँ हैं सबसे पहले मेरे उठाने के फिक्र में महफिल में उनकी मैं किसी चौसर[खेल] का रंग हूँ दिल बैठा महो ज़ब्त है और मुझको इज़्तराब[विक्षप्तवस्था] दिल मेरा मुझसे तंग है मैं दिल से तंग हूँ परवाना गर नहीं तो नहीं पर हूँ शोला दोस्त मक्खी भी हूँ तो हाल दहाने तफंग[बन्दूक की नोंक] हूँ
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