क्यूं हमसे खफा हो गए ऐ जान -ऐ-तमन्ना
भीगे हुए मौसम का मज़ा क्यूं नहीं लेते
ये रात ये बरसात ये सावन का महिना
ऐसे में तो शोलों को भी आता है पसीना
इस रुत में गरीबों कि दुआ क्यूं नहीं लेते
भीगे हुए मौसम का मज़ा क्यूं नहीं लेते
देखो तो ज़रा झाँक के बाहर कि फजा में
बरसात ने इक आग लगा दी है हवा में
इस आग को सीने में बसा क्यूं नहीं लेते
भीगे हुए मौसम का मज़ा क्यूं नहीं लेते
आया है किसे रास जुदाई का अए आलम
तड़पेंगे अकेले में उधर आप इधर हम
दिल दिल से मेरी जान मिला क्यूं नहीं लेते
भीगे हुए मौसम का मज़ा क्यूं नहीं लेते
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