वरक है मेरे सहीफे का आसमान क्या है
रहा ये चाँद तो शायद तुम्हारा चेहरा है
जो पूछता था मेरी उम्र उससे कह देना
किसी के प्यार के मौसम का एक झोंका है
फिजा की शाख पे लफ्जों के फूल खिलने दो
जिसे सुकूत समझते हो ज़र्द पत्ता है
मेरे क़दम भी कोई शाम काश ले लेती
मेरा सफर भी तो सूरज की तरह तनहा है
ज़रूर चाँद के होंटों पे मेरा नाम आया होगा
मेरी मिज़ह से सितारा सा कोई टूटा है
हर एक शख्स को उम्मीद अब उसी से है
No comments:
Post a Comment