Sunday, May 10, 2009

akhtar ansari ki shayyiri

साफ़ ज़ाहिर है निगाहों से कि हम मरते हैं
मुँह से कहते हुए ये बात मगर डरते हैं
एक तस्वीर-ए-मुहब्बत है जवानी गोया
जिस में रंगों कि इवज़, खून-ए-जिगर भरते हैं
इशरत-ए-रफ्ता ने जा कर न किया याद हमें
आसमान से कभी देखीन गयी अपनी ख़ुशी
अब ये हालत हैं कि हम हस्ते हुए डरते हैं
शेयर कहते हो बहुत खूब तुम 'अख्तर' लेकिन,
अच्छे शायर ये सुना है कि जवान मरते हैं

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