Saturday, May 30, 2009

unknown

जनता हूँ मैं तुमको पा नहीं सकता
किस कदर माय्युस हूँ बता नहीं सकता
नज़र आता है आईनों में तेरा अक्स
तेरी सूरत को मैं भुला नहीं सकता
तेरे आने की आखिरी उम्मीद है ये
इस शम्मा को मैं भुझा नहीं सकता
आंखों में ग़म के साए बैठे हैं
ज़ख्म दिल के मैं छुपा नहीं सकता
ग़मों को ज़बान दे बैठा हूँ मैं
खुशियाँ तुमको मैं अपनी नहीं दे सकता
जल जायेंगे मेरे ख्वाब इंनके साथ
मैं तेरे खतों को जला नहीं सकता
मेरी आंखों से पढ़ लो मेरी दास्ताँ
मुझपे क्या गुजरी मैं सुना नहीं सकता
मुह्ज्को ऐसे न देखो दिल की ख्वाहिशों
अब मैं तुमसे नज़र मिला नहीं सकता
ज़िन्दगी अपने दम पे चल सके तोह चल
मैं तेरा बोझ अब उठा नहीं सकता

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