Friday, May 22, 2009

unknown

बताओ दिल की बाज़ी में भला कया बात गहरी थी
कहा यूँ तो सब कुछ ठीक था पर मात गहरी थी
सुनो बारिश ! कभी खुद से भी कोई बढ़ के देखा है
जवाब आया, इन आँखों की मगर बरसात गहरी थी
सुनो पीतम ने होले से कहा था कया ? बताओगे ?
जवाब आया, कहा तो था मगर वो बात गहरी थी
दिया दिल का समंदर उसने, तुमने कया किया उसको ?
हमें बस डूब जाना था के यें सौगात गहरी थी
वफ़ा का दस्त कैसा था, बताओ तुम पे कया बीती
भटक जाना ही था हमको वहां पर रात गहरी थी
तुम उस के जिक्र पर क्यों डूब जाते हो ख्यालों में ?
रफाकात और अदावत अपनी उस के साथ गहरी थी
नज़र आया तुम्हें इस अजनबी में कया बताओगे ?
सुनो कातिल निगाहों की वो ज़ालिम घात गहरी थी

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