nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Friday, May 22, 2009
unknown
पसीने पसीने हुए जा रहे हो यें बोलो कहाँ से चले आ रहे हो हमें सबर करने को कह तो रहे हो मगर देख लो, खुद ही घबरा रहे हो यें कैसी बुरी तुमको नज़र लग गयी है बहारों के मौशम में मुरझा रहे हो यें आईना है यें तो सच ही कहेगा क्यूँ अपनी हकीक़त से कतरा रहे हो
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