nikala mujhko zannat se
fareb-e-zindgi de kar..............
diya phir shaunq zannat ka ye hairani nahi jaati.......
Sunday, May 10, 2009
unknown
दिखायी दिये यूँ कि बेखुद किया हमें आप से भी जुदा कर चले जबीं सजदा करते ही करते गयी हक-ए-बंदगी हम अदा कर चले परस्तिश की यां तै कि ऐ ! बुत तुझे नज़र में सबों कि खुदा कर चले बहुत आरजू थी गली कि तेरी सो यां से लहू में नहा कर चले
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