फकिराना आये सदा कर चले
मियां खुश रहो हम दुआ कर चले
जो तुझ बिन ना जीने को कह्ते थे हम
सो इस अहद को अब वफ़ा कर चले
कोई न-उम्मीदाना करते निगाह
सो तुम हमसे मुँह भी छिपा कर चले
जबीं सजदा करते ही करते गयी
हक-ए-बंदगी हम अदा कर चले
परसतिश कि यां तै कि ऐ ! बुत तुझे
नज़र में सबों कि खुदा कर चले
कहें कया जो पूछे कोई हमसे 'मीर'
जहाँ में तुम आये थे कया कर चले
No comments:
Post a Comment