Saturday, May 30, 2009

unknown

इसी तरह से हर एक ज़ख्म खुशनुमा देखे
वोह आए तोः मुझे अब भी हरा भरा देखे
गुज़र गये हैं बोहत दिन रफाकात-ए-शब् में
एक उमर हो गई चेहरा वोह चंद सा देखे
मेरे सकूत से जिस को गिले रहे कया कया
बिछड़ते वक़त इन् आंखों का बोलना देखे
तेरे सिवा भी कई रंग खुश नज़र थे मगर
जो तुझको देख चुका हो वोह और कया देखे
बस एक रेत का ज़रा बचा था आंखों में
अभी तलक जो मुसाफिर का रस्ता देखे
उसी से पूछे कोई दस्त की रफाकात जो
जब आँख खोले पहरों का सिलसिला देखे
तुझे अज़ीज़ था और मैंने उसको जीत लिया
मेरी तरफ़ भी तोः एक पल तेरा खुदा देखे

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