गम-ए-हिज्र-ए-यार कब तक, रहूँ बेकरार कब तक
मेरे दिल बता ये मुझको, करुँ उसको प्यार कब तक
ये हुजूम-ए-नामुरादी गम-ए-बेशुमार कब तक
तेरी बात का भरोसा तेरा इंतज़ार कब तक
शब्-ए-हिज्र की उदासी कहीं मुझको ले न डूबे
मेरी धडकनों पे होगा तेरा इख्तिय्यर कब तक
न ही आज का भरोसा न ही कल की हैं उमीदें
तेरी राह गुज़र तकूँ मैं शब्-ए-वस्ल-यार कब तक
मैं निकल पड़ी थी तन्हा लिए सारे रंज दिल पर
मगर फिर ख्याल आया के सहूँ यह बार कब तक
मेरी आंखें तक रही हैं तेरी वापसी की राहें
तू ही अब बता दे मुझको करुँ इंतज़ार कब तक
मुझे यूँ तो दे गया है वो दिलासा जाते जाते
मगर अब यह सोचती हूँ करुँ ऐतबार कब तक
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