Friday, May 22, 2009

faiz ahmed faiz ki shayyiri

नसीब आजमाने के दिन आ रहे हैं
क़रीब उनके आने के दिन आ रहे हैं
जो दिल से कहा है, जो दिल से सुना है
सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं
अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं
टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं
सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं
चलो फैज़ फिर से कहीं दिल लगाएं
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं


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