Friday, May 22, 2009

hafeez jaunpuri ki shayyiri

बैठ जाता हूँ जहाँ छाँव घनी होती है
हाय क्या चीज़ गरीब-उल-वतनी[away from homeland] होती है
नहीं मरते हैं, तो ईजा नहीं झेली जाती
और मरते हैं तो पैमान शिकनी होती है
लुट गया वोह तेरे कूचे में रखा जिसने क़दम
इस तरह की भी कहीं राह्ज़ानी होती है
मै-कशों को न कभी फिक्र-ए-कम-ओ-बेश हुई
ऐसे लोगों की तबियत भी गनी होती है
पी लो दो घूँट की साकी की रहे बात हफीज़
साफ इनकार में खातिर शिकनी होती है

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