Friday, May 29, 2009

hasrat ki shayyiri

फिर भी है तुम को मसीहाई का दावा देखो
मुझको देखो, मेरी मरने की तमन्ना देखो
जुर्म-ऐ-नज़ारा पे कौन इतनी खुशामद करता
अब वोह रूठे हैं लो और तमाशा देखो
दो ही दिन में वोह बात है न वोह चाह न प्यार
हमने पहले ही ये तुमसे न कहा था देखो
हम न कह्ते थे बनावट ही है सारा गुस्सा
हस के लो फिर वोह उंन्होने हमें देखा देखो
घर से हर वक्त निकल आते हो खोले हुए बाल
शाम देखो न मेरी जान सवेरा देखो
खाना-ऐ-जान में नमूदार है एक पैकर-ऐ-नूर
हसरतों आओ रुख-ऐ-यार का जलवा देखो
मर मिटे हम तोह कभी याद भी तुम ने न किया
अब मुहब्बत का न करना कभी दावा देखो
दोस्तों तर्क-ऐ-मुहब्बत की नसीहत है फजूल
और न मानो तोह दिल-ऐ-जार को समझा देखो
अब वो शोखी से ये कहते हैं सितमगर जो हैं हम
दिल किसी और से कुछ रोज़ बहला देखो
हवस-ए-दीद मिटी है न मिटेगी 'हसरत'
देखने के लिए चाहो उन्हें जितना देखो

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