तेरे शहर मैं एक दीवाना भी है
जो सब के सितम का निशाना भी है
बड़ा सिलसिला है खुदा से मेरा
फलक पे मेरा आना जाना भी है
है मकसद तो अपनी ही तक्मील का
मोहब्बत यह तेरी बहाना भी है
रवायत है आदम से यह इश्क़ की
यह सौदा बोहत ही पुराना भी है
भटकते हैं आवारा गलियों मैं हम
कहीं आशिकों का ठिकाना भी है
मुसलसल सफर मैं ही अपनी हयात
यहाँ से कहीं लौट जाना भी है
मिले वोः तो कुछ हाल-ए-दिल हम कहें
आज मौसम सुहाना भी है
कही है ग़ज़ल हमने उसके लिए
यह अश्क जिस से छुपाना भी है
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