Friday, May 22, 2009

ibrahim ashk ki shayyiri

तेरे शहर मैं एक दीवाना भी है
जो सब के सितम का निशाना भी है
बड़ा सिलसिला है खुदा से मेरा
फलक पे मेरा आना जाना भी है
है मकसद तो अपनी ही तक्मील का
मोहब्बत यह तेरी बहाना भी है
रवायत है आदम से यह इश्क़ की
यह सौदा बोहत ही पुराना भी है
भटकते हैं आवारा गलियों मैं हम
कहीं आशिकों का ठिकाना भी है
मुसलसल सफर मैं ही अपनी हयात
यहाँ से कहीं लौट जाना भी है
मिले वोः तो कुछ हाल-ए-दिल हम कहें
आज मौसम सुहाना भी है
कही है ग़ज़ल हमने उसके लिए
यह अश्क जिस से छुपाना भी है


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