Friday, May 29, 2009

iftikhar naseem ki shayyiri

न गलियाँ हैं, न घर, कुछ भी नहीं है
सितारों से उधर कुछ भी नहीं है
थकन कहती है आ घर लौट जाएँ
मुसाफिर ये सफर कुछ भी नहीं है
परिंदे तोह अज़ल के बे-वफ़ा हैं
खिज़ाँ में शाख पर कुछ भी नहीं है
मेरा भाई से रिश्ता खून का है
ताल्लुक है मगर कुछ भी नहीं है
ये अलमारी तोह है वैसी की वैसी
किताबों का असर कुछ भी नहीं है
अभी दुनिया है मेरी ना-मुकम्मल
फलक या बाल-ओ-पर भी नहीं है

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