Friday, May 29, 2009

javed akhtar ki shayyiri

सच ये है, बेकार हमें ग़म होता है
जो चाह था, दुनिया में कम होता है
ढलता सूरज, फैला जंगल, रास्ता गुम
हमसे पूछो कैसा आलम होता है
गैरों को कब फुर्सत है दुःख देने की
जब होता है, कोई हमदम होता है
ज़ख्म तोह हमने इन् आँखों से देखे हैं
लोगों से सुनते हैं, मर्रहम होता है
ज़हन की शाखों पर अशआर आ जाते हैं
जब तेरी यादों का मौसम होता है

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