सोज़-एगम दे के मुझे उस्सने ये इरशाद किया
जा तुझे कशमकश-ऐ-दहर से आजाद किया
वो करें भी तोह किन अल्फाज़ में तेरा शिकवा
जिनको तेरी निगाह-ऐ-लुत्फ़ ने बरबाद किया
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा में तुझे याद किया
ऐसे में मैं तेरे ताज-तकल्लुफ पे निसार
फिर तो फरमाए वफ़ा आप ने इरशाद किया
इसका रोना नहीं क्यूँ तुमने किया दिल बरबाद
इसका गम है की बोहत देर में बरबाद किया
इतना मासूम हूँ फितरत से, कली जब चटकी
झुक के मैंने कहा, मुझसे कुछ इरशाद किया
मेरी हर साँस है इस बात की शाहिद-एमौत
मैंने हर लुत्फ़ के मौके पे तुझे याद किया
मुझको तो होश नहीं तुमको ख़बर हो शायद
लोग कह्ते हैं की तुमने मुझे बरबाद किया
वो तुझे याद करे जिसने भुलाया हो कभी
हमने तुझको न भुलाया न कभी याद किया
कुछ नहीं इसके सिवा 'जोश' हरिफ्फों का कलाम
वस्ल ने शाद किया हिज्र ने न_शाद किया
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