हो कोई बात नया ज़ख्म लगा देता है
अब तोः एहसास भी जीने की सज़ा देता है
जाऊं गुलशन में तोः सुखा हुआ पत्ता कोई
दास्ताँ शाख से गिरने की सुना देता है
तेरे कूचे से जो गुजरां तोः दरीचा तेरा
याद तेरा कोई अंदाज़ दिला देता है
घर में बैठो तोः कोई गोशा ही घर का मुझको
मेरी तन्हाई का एहसास दिला देता है
चोट लगती है तोः तस्कीन सी पार जाती है
हो के ज़ख्मी मेरा दिल और मज़ा देता है
सादगी देखिये उस कातिल-ए-मासूम की 'मुशी'
जिंदगी छीन के जीने की दुआ देता है
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