Friday, May 29, 2009

rafiquzzaman ki shayyiri

कितना पोशीदा[hidden] हवाओं का सफर रखा गया
आने वाले मौसमों से बे-ख़बर रखा गया
आज भी फिरता हूँ उस्सकी जुस्तुजू में हर तरफ़
कौन सी बस्ती में आख़िर मेरा घर रखा गया
चाँद मुबहम[difficult] ख्वाब आंखों में लिए फिरता हूँ
और क्या मेरे लिए जाद सफर रखा गया
दोस्तों में कुछ मेरी पहचान तोह बाक़ी रहे
इस लिए मुझ में अजब अजब हुनर रखा गया
इस हथेली पर चमकती रेत के ज़र्रे हैं अब
जिस हथेली पर कभी गंज-गुहार रखा गया
मेरा अपना खौफ ही क्या कम था लेकिन 'रफीक'
मेरी अपनी जात में किस किस का डर रखा गया

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