Saturday, May 30, 2009

rishi ki shayyiri

यूँही अपनों के दिल में शक कोई पैदा नहीं करते
जो लब तक आ गई उस बात को रोका नहीं करते
किसी से आदतन यूँही कोई वादा नहीं करते
अगर कर ही लिया तो फिर उसे तोडा नहीं करते
वो देगा तो मगर गाता फिरेगा सारी दुनिया में
किसी कमज़र्फ़ इंसान से मदद माँगा नहीं करते
वो हर जुमले पे सांसे दाद की उम्मीद करते हैं
मगर सुनकर मेरे अशआर कुछ बोला नहीं करते
ये माना जिंदगी फैलाव का ही नाम है लेकिन
सिमटना भी हो मुश्किल इतना भी फैला नहीं करते
ये साया देंगे, गुल देंगे या देंगे बड़े होकर
यूँ पौधों को सदा लालच में ही पाला नहीं करते
बयाँ-ऐ-दर्द में मेरे मज़ा पाते हैं चारागर
यूँ मुझ बीमार को वो जानकर अच्छा नहीं करते
सभी की फितरतें अपनी सभी की मुश्किलें अपनी
सभी को एक पैमाने से ही आँका नहीं करते
बड़े लोगों की महफिल में मुझे ले तो चले हो पर
बताते मुझको तुम रहना वहां क्या क्या नहीं करते
कहीं कहना ज़रूरी है कहीं परदा मुनासिब है
सभी के सामने दिल को 'ऋषि' खोला नहीं करते

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