Friday, May 29, 2009

unknown

होंठों पे मोहब्बत के फ़साने नही आते
साहिल पे समुन्दर के हज़ने नही आते
पलकें भी चमक उठी हैं सोते ही हमारी
आंखों को अभी ख्वाब छुपाने नही आते
दिल उजड़ी हैं इक सराए की तरह हैं
अब लोग यहाँ रात जगाने नही आते
यारो नये मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद समझे दर्द पुराने नही आते
उड़ने दो अभी परिंदों को शोख हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नही आते
इस शहर के बदल तेरी जुल्फों की तरह हैं
ये आग लगते हैं पर बुझाने नही आते
अहबाब भी घईरों की तरह अदा सीख गए हैं
आती हैं मगर दिल को दुखाने नही आते…

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