ज़माना आज नही डगमगा के चलने का
संभल भी जा की अभी वक़्त है संभलने का
बहार आए चली जाए फिर चली आए
मगर ये दर्द का मौसम नही बदलने का
ये ठीक है की सितारों पे घूम आए है
मगर किसे है सलीका ज़मीं पे चलने का
फिरे है रातों को आवारा हम तो देखा है
गली गली में समा चाँद के निकालने का
तमाम नशा-ए-हस्ती तमाम कैफ-ए-वजूद
वो इक लम्हा तेरे जिस्म के पिघलने का
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