Saturday, May 30, 2009

unknown

यादों को अपने दिल से मिटा क्यूँ नहीं देते
जो जा चुका है उसको भुला क्यूँ नहीं देते
मुजरिम हूँ मैं तेरा मुझे इतना तोह बता
खामोश खड़े हो क्यूँ सज़ा क्यूँ नहीं देते
उससे जिस के ज़ख्म हैं इनायत तेरी
गर है तुम्हारे पास तोह दावा क्यूँ नहीं देते
कई घर नहीं बसते हैं जिन की वजह से
उन् अध्जली रस्मों को जला क्यूँ नहीं देते
उसने तुम्हारी खातिर क्या क्या नहीं किया
तुम उसकी वफाओं का सिला क्यूँ नहीं देते
तुम्हें मुझसे मोहब्बत है जानता हूँ मैं
ये बात अपने लब से बता क्यूँ नहीं देते
अनमोल खजाना है मुस्कुराहतें तेरी
थोड़ा सा इससे मुझपे लुटा क्यूँ नहीं देते
वो आग जो दिल में लगाई थी कभी तुमने
वो आग आज ख़ुद ही बुझा क्यूँ नहीं देते
एक अरसा हुआ चैन से सोये हुए हमको
मेरा चैन, मेरी नींदें चुरा क्यूँ नहीं लेते

No comments:

Post a Comment

wel come