तुम मेरी वफाओं का सिला क्यूँ नही देते
या फिर मेरी साँसों को घटा क्यूँ नहीं देते ?
है खाक़ हुई जल कर, हसरत-ऐ-मुहब्बत
चिंगारियों को बुझती, हवा क्यूँ नही देते ?
जीने का मकसद अब तोह, कुछ भी नहीं बाकि
मरने का बहाना भी बता क्यूँ नहीं देते ?
बढ़ने लगा है दर्द अंधेरों सा ज़मीन पर
तुम उम्मीद-ऐ-शम्मा कोई, जला क्यूँ नही देते ?
मुझे हद से गुजरने का कोई शौक़ नही है
मेरी हद क्या है मुझको बता क्यूँ नही देते
रुखसत हुई जा रही हैं खुशियाँ सभी
तुम बची हुई आस को भी बहा क्यूँ नहीं देते ?
यादों का दरिया सिम्त कर एक बूँद रह गया है
इस बूँद को आँखों से बहा क्यूँ नही देते
रुक रुक के सुबकने से तोह अच्छा यही होगा
एक बार ही जी भर के रुला क्यूँ नही देते
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