Friday, May 29, 2009

zulfiqar ali bokhari ki shayyiri

हम अभी और भी कुछ रोज़ परेशां होंगे
उक़्द--मुश्किल[difficult knot] हैं तोह मुश्किल से ही आसन होंगे
तख्त अपना है मगर वक्त नहीं है अपना
वक्त आया तोह हमीं लोग सुलेमान होंगे
हब्स[confinement] इस शहर में ऐसा है के दम घुटता है
कब बहार आएगी कब चाक गरीबां होंगे
आज उस बज्म--तरब में हमें ले चल दिल
आज हमदर्द के मारे भी ग़ज़ल-ख्वान होंगे
ये जो हैं शहर के वाइज़, ये खातिबान--किराम[exalted orators]
ये भी अल्लाह ने चाह तोह मुसलमान होंगे

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