Saturday, June 6, 2009

asfer ki shayyiri

मेरी सोच मुसाफिर मेरा कलाम राहगीर है
मेरा अंदाज़-ए-बयाँ मेरा जोक-ए-आगाही की तफसीर है
खाक़ हूँ मंजिल भी मेरी खाक मगर सच है
दुनिया कुछ नही फ़क़त मेरे ख्वाबों की तफसीर है
मैं रौंद गया होता कब से दर-ए-वेह्शत
मेरी वफ़ा ,अगर तेरे पाँव की ज़ंजीर है
मेरे अंदाज़-ए-बयाँ से नालायाँ न होना के
मेरा सच ही मेरा मुजसम मेरी तस्वीर है
भटकती चाहत पर पहरे बिठाना कब आसन हुआ
ये चाहत ये उल्फत तो जिंदगी का सफर है
मेरे वरसों में वर्सेत का ज़िक्र है 'अस्फ़र'
क्या बताऊँ ? चाहत पूँजी, चाहत ही जागीर है ....

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