ऐ सनम जिस ने तुझे चाँद की सूरत दी है
उसी अल्लाह ने मुझको भी मुहब्बत दी है
तेग बे-आब है न बाजू-ए-कातिल कमज़ोर
कुछ गिराँ जानी है, कुछ मौत ने फुरसत दी है
फुर्क़त-ए-यार में रो-रो के बसर करता हूँ
जिंदगानी मुझे क्या दिल है, मुसीबत दी है
जोश पैदा किए सुन'ने को तेरा ज़िक्र-ए-जमाल
देखने को तेरी आंखों में बसारत दी है
कमर-ए-यार के मज़मून को बाँधो 'आतिश'
जुल्फ-ए-खूबाँ सी मेरी तुमको तबियत दी है
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