Thursday, June 4, 2009

ibrahim zauq ki shayyiri

लेते ही दिल जो आशिक-ए-दिल-ए-सोज़[pathetic] का चले
तुम आग लेने आए थे क्या आये क्या चले
बल बे-गरूर-ए-हुस्न, ज़मीन पर न रखे पाऊँ
मानिंद आफताब वो बे-नवाशे पा' चले
क्या ले चले गली से तेरी हम के जूं नसीम
आए थे सर पे खाक़ उडाने उड़ा चले
आलूदा[impure] चश्म में न हुई सुरमा से निगाह
देखा, जहाँ से साफ़ ही अहले सफा[pure] चले
साथ अपने ले के तुसाने[अब्रिद्लेद ambitions] उमरे रवां को आह
हम इस सराए दहर[world] में क्या आये क्या चले
फिकरे क़नायत उनको मयस्सर हुई कहाँ
दुनिया से दिल में ले के हिरस[greed]-ओ-हवा चले
ऐ ! 'ज़ौक़' है गज़ब निगाह-ए-यार, अल्हाफीज़
वो क्या बचे के जिस पे ये तीर-ए-कजा चले

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