Saturday, June 6, 2009

misbah shah saabi ki shayyiri

मुहब्बतों से अपनी मुझे मात दे गया
वो जाते जाते ऐसे इलज़ामात दे गया
आईने मैं खुदको को कभी देख पायी
मेरे ख़िलाफ़ मुझको ही जज़्बात दे गया
मुड के जवाब देने से पत्थर की बनूँगी
दुनिया को पूछने को वो सवालात दे गया
नफरत कहूं इनको या उल्फत कहूँ इन्हें
हर पल बदलते ऐसे खियालात दे गया
आँखों से मेरी प्यार था उसको इस कदर
सो आंसू मेरी आँखों को सोगात दे गया
बन के सवेरा छाई जीवन में जिस के तू
काटने को लम्बी सियाह रात दे गया
सिसकी बन के जो तेरे दिल में रह गई
दम तोड़ती लबों को ऐसी बात दे गया
'साबी' तू बन पुजारन जिसे पुजती रही
पूजने को अपनी तुझे जात दे गया

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