Thursday, June 4, 2009

momin ki shayyiri

जलता हूँ हिज्र-ए-शाहिद-ओ-याद-ए-शराब में
शौक़-ए-सवाब ने मुझे डाला अजाब में
कह्ते हैं तुमको होश नही इज़तराब में
सारे गिले तमाम हुए एक जवाब में
पहली शमीम-ए-यार मेरे अश्क-ए-सुर्ख से
दिल को गज़ब फिशार हुआ पेच-ओ-ताब में
रहते हैं जमा कूचा-ए-जानां में खास-ओ-आम
आबाद एक घर है जहाँ-ए-ख़राब में
बदनाम मेरे गिरिया-ए-रुसवा से हो चुके
अब उज्र क्या रहा निगाह-ए-बेहिजाब में
मतलब की जुस्तजू ने ये क्या हाल कर दिया
हसरत भी नही दिल-ए-नाकामयाब में
नाकामियों से काम रहा उम्र भर हमें
पीरी में यास है जो हवस थी शबाब में
क्या जलवे याद आए के अपनी ख़बर नही
बे-बादा मस्त हु मैं शब्-ए-महताब में
पैहम सजूद पा-ए-सनम पर दम-ए-विदा
'मोमिन' खुदा को भूल गए इज़्तराब में

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