Friday, June 5, 2009

mustafa zaidi ki shayyiri

कोई हम-नफस नहीं है कोई राजदां नहीं है
फ़क़त एक दिल था अपना, सो वो मेहरबान नहीं है
किसी और ग़म में इतनी ख़लिश-ऐ-निहां[secret pain] नहीं है
ग़म-ए-दिल मेरा रफीको, ग़म-ए-रायेगाँ[useless suffering] नहीं है
मेरी रूह की हकीक़त मेरे आंसुओं से पूछो
मेरा मजलिसी[public] तबस्सुम, मेरा तर्जुमान[manifestation] नहीं है
किसी आँख को सदा दो, किसी जुल्फ को पुकारो
बड़ी धूप पड़ रही है, कोई सायेबान नहीं है
इन्ही पत्थरों पे चल कर अगर आ सको तो आओ
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां[galaxy] नहीं है

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