Friday, June 5, 2009

nasir kazmi ki shayyiri

गर्दिशों के है मारे हुए ना, दुश्मनों के सताए हुए है
जितने भी ज़ख्म है मेरे दिल पर, दोस्तों के लगाये हुए है
जब से देखा तेरा क़द-ओ-कामत, दिल पे टूटी हुई है क़यामत
हर बला से रहे तू सलामत, दिन जवानी के आए हुए है
और दे मुझको दे और साकी, होश रहता है थोड़ा सा बाकी
आज तल्खी भी है इन्तहा की, आज वो भी पराये हुए है
कल थे आबाद पहलु में मेरे, अब है गैरों में डेरे
मेरी महफिल में कर के अंधेरे, अपनी महफिल सजाये हुए है
अपने हाथों से खंजर चला कर, कितना मासूम चेहरा बना कर
अपने कन्धों पे अब मेरा कातिल, मेरी मय्यत उठाये हुए है
मेहवाशों को वफ़ा से क्या मतलब, इन बुतों को खुदा से क्या मतलब
इनकी मासूम नज़रों ने 'नासिर', लोग पागल बनाये हुए है
गर्दिशों के है मारे हुए ना, दुश्मनों के सताए हुए है
जितने भी ज़ख्म है मेरे दिल पर, दोस्तों के लगाये हुए है

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